Wednesday, July 20, 2011

स्वप्न से स्मृति(smriti) तक....."आओ ज़िन्दगी एक बार गले मिल लें"

मौत के साथ मैं हमेशा से ही बेतकल्लुफ़ रहा हूँ। इसके जो भी कारण रहे उनमें ना जाते हुए केवल इतना कहना चाहूंगा कि यह रचना पुरानी है और मौत की तरफ़ मेरी बेतकल्लुफ़ी कम हुई है।


"आओ ज़िन्दगी एक बार गले मिल लें
वक़्त बिछड़ने का आ गया
बहुत कुछ तुमने मुझे दिया
पर यूँ जैसे टुकड़ों को सिया
कम देती पर स्नेह के साथ देती
जब गिरा तो थाम मेरा हाथ लेती
तुमने शब्द दिये पर अर्थ नहीं
सुंदर सपने दिये सामर्थ्य नहीं
मौसम दिये लेकिन बहार नहीं
दिल दिया पर किसी का प्यार नहीं
वन, पर्वत, नगर और गाँव दिये
चल सकने को नहीं पाँव दिये
अब अंत आ चुका मेरे निकट है
तुमसे बिछड़ना कितना विकट है
क्या हुआ जो तुमने तिरस्कार किया
पर मैनें तो तुमको प्यार दिया
विदाई है मेरी आँखे नम हैं
मुझे आशा अधिक दुख कम है
तुम्हारी तरह वो नहीं सताएगी
गोद में मृत्यु मुझे सुलाएगी
मैं रहा बिखरा बिखरा अब तक
अब वक़्त सँवरने का आ गया
आओ ज़िन्दगी एक बार गले मिल लें
वक़्त बिछड़ने का आ गया"

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